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Class 12 Hindi Apathit Gadyansh Unseen Passage
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Apathit Gadyansh for Class 12
वास्तव में दिशाविहीन युवा पीढ़ी को अपने लक्ष्य का बोध शिक्षा कराती है किन्तु आज की शिक्षा इस उदेश्य की पूर्ति में मापदण्ड के घट जाने से लाचार सी हो गई है। आज शिक्षा पाकर भी युवा वर्ग बेकारी की भट्टी में झुलस रहा है। वह न अपना ही हित सोच पा रहा है और न राष्ट्र का ही। इस स्थिति में असन्तोष उसके हदय में जड़ें जमाता जा रहा है। युवा पीढ़ी में असन्तोष के कारण तथा निदान- इस असन्तोष का मुख्य कारण आज की समस्याओं का सही समाधान न होना है। आज इस रोग से देश का प्रत्येक विश्वविद्यालय पीडि़त है। आज इस असन्तोष के कारण निदान सहित इस प्रकार हैं-
राष्ट्र प्रेम का अभाव- विद्यार्थी का कार्य अध्ययन के साथ-साथ राष्ट्र जीवन का निर्माण करना भी है, किन्तु यह असन्तोष में बह जाने से भटक जाता है। देश से प्रेम करना उसका कर्तव्य होना चाहिए।
उपेक्षित एवं लक्ष्य विहीन शिक्षा- आज हदयहीन शिक्षकों के कारण युवा शक्ति उपेक्षा का विषपान कर रही है। आज सरकार की लाल फीताशाही विद्यार्थियों को और अधिक भड़का रही है। शिक्षा का दूसरा दोष उदेश्य रहित होना है। आज का युवक, शिक्षा तो ग्रहण करता है, किन्तु वह स्वयं यह नहीं जानता कि उसे शिक्षा पूर्ण करने के बाद क्या करता है। स्वतंत्र व्यवसाय के लिए कोई शिक्षा नहीं दी जाती। आज सरकार को अध्ययन के उपरांत कोई प्रशिक्षण देकर विद्यार्थी को अपने कार्य में लगाना चाहिए।
भ्रष्ट प्रशासन- आज जनता द्वारा चुने हुए एक से एक भ्रष्ट प्रतिनिधि शासन में पहुँचते हैं। चुने जाने के बाद ये प्रतिनिधि रिश्वत द्वारा धन पैदा करते हैं और जनता के दुख दर्दों को ताक पर रख देते हैं। लाल फीताशाही चाहे अत्याचार ही क्यों न करे, ये नेता इसको बढ़ावा देते हैं। फलतः युवा वर्ग में असन्तोष की लहर दौड़ जाती है।
विकृत प्रजातन्त्र- आजादी के बाद हमारे राष्ट्रीय कर्णधारों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया। ये नेता भ्रष्ट तरीकों से अनाप शनाप धन व्यय कर शासन में पहुँचते हैं। फिर स्वयं को जनता का प्रतिनिधि न समझकर राजपुत्र को नम्रतापूर्वक छात्रों को समझाकर किसी उत्पन्न समस्या का समाधान करना चाहिए।
विकृत चलचित्र जगत- आज चलचित्र जगत बड़ा ही दूषित है। आज हर चित्र में मार धाड़ और कामुकता तथा जोश के चित्र दिखाए जाते हैं। वस्तुतः चलचित्र का उपयोग विद्यार्थी को ज्ञान तथा अन्य विषयों की शिक्षा के लिए होना चाहिए।
समाचार पत्र तथा आकाशवाणी- ये दोनों युवापीढ़ी के लिए वरदान के साथ साथ अभिशाप भी हैं। जहाँ एक विश्वविद्यालय के विद्यार्थी असन्तुष्ट हुए, वहाँ समाचार पत्रों एवं आकाशवाणी के माध्यम से यह खबर सभी जगह फैल जाती है, जिससे युवा पीढ़ी में आक्रोश भड़क उठता है। सरकार को ऐसे समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
आज शासन सत्ता के विरोधी दल विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को भड़काकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं।
सांस्कृतिक संस्कारों का अभाव- आज युवा पीढ़ी में सांस्कृतिक संस्कारों का अभाव है। जिनके कारण वे दूसरों को अपने से अलग समझकर उन पर आक्रोश करते हैं। अतः विश्वविद्यालयों में भी नैतिक शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।
आज के युग में विश्व स्तर पर भारत को रखकर शिक्षा प्रणाली विश्व में सबसे अधिक है। इसलिए हमारे राष्ट्र निर्माताओं को यह दृढ़ संकल्प कर लेना चाहिए कि वे विश्वविद्यालयों का सुधार करें, ताकि युवा पीढ़ी में असन्तोष न बढ़ सके।
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए|
(ख) आज की युवा पीढ़ी में असंतोष के कारण लिखिए?
(ग) भ्रष्ट प्रशासन के कारण युवा पीढ़ी में असंतोष किस प्रकार उत्पन्न हो रहा है?
(घ) युवा पीढ़ी में बढ़ते असंतोष को दूर करने के लिए क्या करना चाहिए?
(ड़) 'प्रशासन' और 'प्रतिनिधि' शब्द में उपसर्ग तथा मूल शब्द बताइये|
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) इस गद्यांश का उचित शीर्षक 'युवा पीढ़ी में अशंतोष' है|
(ख) युवा पीढ़ी में असंतोष के कारण है- राष्ट्र प्रेम का आभाव, उपेक्षित एवं लक्ष्य विहीन शिक्षा, भ्रष्ट प्रशासन, विकृत प्रजातन्त्र, विकृत चलचित्र जगत, समाचार पत्र तथा आकाशवाणी, सांस्कृतिक संस्कारों का अभाव|
(ग) जनता द्वारा चुने हुए भ्रष्ट प्रतिनिधि शासन में पहुँचते हैं। चुने जाने के बाद ये प्रतिनिधि रिश्वत द्वारा धन पैदा करते हैं और जनता के दुख दर्दों को ताक पर रख देते हैं। लाल फीताशाही चाहे अत्याचार ही क्यों न करे, ये नेता इसको बढ़ावा देते हैं। फलतः युवा वर्ग में असन्तोष की लहर दौड़ जाती है।
(घ) युवा पीढ़ी में असंतोष को दूर करने का लिए
(1) युवाओ में देश प्रेम की भावना उत्पन्न करना|
(2) सरकार को अध्ययन के उपरांत कोई प्रशिक्षण देकर विद्यार्थी को अपने कार्य में लगाना चाहिए।
(3) भ्रष्टाचार को समाप्त करना
(4) छात्रों को समझाकर किसी उत्पन्न समस्या का समाधान करना चाहिए।
(5) चलचित्र का उपयोग विद्यार्थी को ज्ञान तथा अन्य विषयों की शिक्षा के लिए होना चाहिए।
(ड़) (1) 'प्र' उपसर्ग 'शासन' मूलशब्द
(2) 'प्रति' उपसर्ग 'निधि' मूलशब्द|
Discursive Passage Hindi for Class 12
जाति - धन, प्रिय नव - युवक समूह,
विमल मानस के मंजू मराल |
देश के परम मनरम रत्न,
ललित भारत - ललना के लाल |
लोक की लाखों आंखे आज,
लगी है तुम लोगों की ओर,
भरी उनमे है करुणा भूरि,
लालसमय है लालकित कोर |
उठो, लो आँखे अपनी खोल
विलोको अवनितल का हाल,
अनलोकित में भर आलोक,
करो कमनीय कलंकित भाल |
भरे उर में जो अभिनव ओज,
सुना दो वह सुन्दर झंकार,
ध्वनित हो जिससे मानस - यंत्र,
छेड़ दो उस तंत्री के तार |
रंगो में बिजली जावे दौड़,
जगे भारत - भूतल का भाग,
प्रभावित धुन से हो भरपूर,
उमग गाओ वह रोचक राग |
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) 'जाति - धन, प्रिय नवयुवक समहू' किनके लिये और क्यों कहा गया है?
(ख) कवि ने नवयुवको को कैसा राग गाने के लिये कहा है ?
(ग) प्रस्तुत काव्यांश का केंद्रीय भाव क्या है लिखये |
(घ) 'करो कमनीय कलंकित भाल' से क्या आशय है ?
(ड़) प्रस्तुत काव्यांश में देश के नवयुवको से क्या करने के लिये कहा गया है ?
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) यह भारतीय नवयुवको के लिये कहा गया है; क्योकि उनकी ओर देश के करोडो लोगो के आशापूर्ण दृष्टि लगी हुई है| इनसे ही भारत का मस्तक गौरव गरिमा से उन्नत हो सकता है और ये ही जनता की समस्त लालसाओं की पूर्ति करके देश का उद्धार क्र सकते है और राष्ट्रभक्ति का सुफल प्राप्त करा सकते है |
(ख) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने नवयुवको को ऐसा राग गाने के लिया कहा है, जिससे देश से अज्ञान एवं पराधीनता का कलंक मिट जावे, जनता में ओजस्वी भावों का और नवचेतना का प्रसार होवे | नवजागरण का ऐसा राग फैले जिससे जाग्रति, देशभक्ति, कर्मनिष्ठा एवं स्वतंत्र भावना का प्रसार होवे|
(ग) प्रस्तुत कविता का केंद्रीय भाव यह है कि यद्धपि भारत को स्वाधीनता मिल गयी है, परन्तु उसकी रक्षा करने का भार देश के नवयुवकों पर है | देश के नवयुवक ही जनता में अभिनव ओज भर कर उनकी आशाओ को पूरी कर सकते है तथा उनके द्वारा ही नवचेतना का उत्तरोत्तर संचार हो सकता है|
(घ) जब भारत पराधीन था, तब देश में शिक्षा कि सुविधाएं कम ही थी | उस समय भारत में अज्ञान का संचार था और उससे भारतीयों का मस्तक कलंकित हो रहा था | देश के नवयुवक अज्ञान एवं पराधीनता के कलंक को मिटाकर भारत के मस्तक को सुन्दर - आकर्षक बना दे|
(ड़) प्रस्तुत काव्यांश में देश के नवयुवको से कहा गया है कि लाखों देशवासी उनसे अपने कल्याण कि आशा लगये हुए है | नवयुवक देश के अज्ञान, निराशा आदि के अंधकार को दूर कर सकते है और वे लोगों में नया जोश पैदा कर सकते है | ऐसा करके वे भारत का भाग्य बदल सकते है, कल्याण कर सकते है|
Apathit Gadyansh with multiple choice questions for Class 12
दिवसावसान का समय,
मेघमय आसमान से उतर रही है
वह संध्या - सुंदरी परी - सी
धीरे - धीरे - धीरे |
तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास,
मधुर - मधुर है दोनों उसके अधर -
किन्तु जाता गंभीर - नहीं है उनमे हास - विलास |
हँसता है तो केवल तारा एक
गुंथा हआ उन घुंघराले काले - काले बालों से
ह्रदयराज्य की रानी का वह करता है अभिषेक |
अलसता की सी लता
किन्तु कोमलता की वह काली
सखी नीरवता के कंधे पर डाले बाह,
छाँह-सी अम्बर पथ से चली |
नहीं बजती उसके हाथों में कोई विणा,
नहीं होता कोई अनुराग - राग आलाप
नूपुरों में भी रुनझुन - रुनझुन नहीं
सिर्फ एक अव्यक्त शब्द सा "चुप, चुप, चुप"
है गूंज रहा सुब कहीं-
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) इस काव्यांश में किस काल का वर्णन है ?
(ख) मेघमय आसमान से कौन उतर रही है ?
(ग) संध्या - सुंदरी के अधरों की क्या विशेषता है ?
(घ) संध्या की सखी कौन है ?
(ड़) संध्या को कवि ने अलसता की सी लता क्यों कहा है ?
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) इस काव्यांश में सूर्यास्त को लेकर संधायकाल का वर्णन हुआ है |
(ख) मेघमय और बदलो से घिरे आसमान से संध्या रूपी परी जैसी नायिका धरती पर उतर रही है |
(ग) संध्या - सुंदरी के अधरों की यह विशेषता है कि वे स्वाभाविक रूप से लालिमायुक्त और सुकोमल मधुर है, लेकिन उनमे हास - विलास नहीं है |
(घ) संध्या की सखी नीरवता है, अर्थात संध्याकाल में जो निस्तब्धता रहती है, वही उसकी सखी है |
(ड़) संध्याकाल आने पर अभी प्राणी दिनभर की थकन मिटने चाहते है | इस कारण उनके शरीर आलस्य से व्याप्त रहते है | इसी कारण संध्या को अलसता फ़ैलाने वाली लता कहा गया है |
Apathit Gadyansh for Class 12 with answers pdf
वे तो पागल थे |
जो सत्य, शिव, सुन्दर कि खोज में
अपने अपने सपने लिये
नदियों, पहाड़ो, बियाबानों, सुनसानो में
फटेहाल, भूखे - प्यासे
टकराते फिरते थे,
अपने से झुझते थे,
आत्मा कि आज्ञा पर
मानवता के लिये
शिलायें, चट्टानें, पर्वत काट - काटकर,
मूर्तियां, मंदिर और गुफाएँ बनाते थे |
किन्तु ए दोस्त |
इनको मैं क्या कहूँ-
जो मौत कि खोज में
अपनी-अपनी बंदूके, मशीनगनें लिये हुए
नदियों, पहाड़ो, बियाबानों, सुनसानो में
फाटे - हाल, भूखे - प्यासे
टकराते फिरते है,
दुसरो कि आज्ञा पर,
चंद पैसो के वास्ते |
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) प्रस्तुत काव्यांश में किन दो में अंतर बताया गया है? स्पष्ट कीजिये |
(ख) मानवता के हित साधक क्या करते है?
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में क्या सन्देश दिया गया है?
(घ) दूसरों कि आज्ञा पर चलने कहाँ तक उचित है?
(ड़) 'जो मौत कि खोज में' से कवि का क्या तातपर्य है?
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कलाकार और सिपाही में अंतर बताया गया है | पाषाण काल में कलाकार अपनी आत्मा कि आज्ञा पर मानवता की खातिर सुन्दर मूर्तियों एवं कलात्मक गुफाओं का निर्माण करने में लगे रहते थे, जबकि वर्तमान काल में सिपाही अपनी सरकार अथवा सेनापति की आज्ञा पर मौत की खोज में वनो एवं पर्वतो में भटकते रहते है |
(ख) मानवता के हित साधक ऐसे काम करते है, जिनसे सभी को सुख - शांति एवं आनंद मिले | मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा एवं संस्कृति की रक्षा हो सके, इसके लिये वे मूर्तियों, मंदिरो, कलापूर्ण वस्तुओं आदि की रचना करने में लगे रहते है | वे स्वयं कष्टमय जीवन बिताकर भी दुसरो को खुशहाल देखना चाहते है |
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में सन्देश दिया गया है कि मानवता के कल्याण के लिये हमे सत्य, शिव और सुन्दर कि खोज करने वाले मानवतावादियों का अनुसरण करना चाहिए | हमे अपने लिये नहीं, मानवता के लिये कुछ स्थायी काम करने चाहिए, मानवता का हित साधना चाहिए |
(घ) दुसरो कि आज्ञा पर चलना तभी तक उचित है, जब तक उससे अपने साथ ही दुसरो का भी हित हो | एक सिपाही देश कि सीमाओं कि रक्षार्थ और आंतरिक छिपे हुए शत्रुओं से उन्मुलनार्थ सरकार या सेनापति कि आज्ञा का पालन करता है, तो वह उचित है | परन्तु निरपराध लोंगो कि हिंसा करना सर्वथा अनुचित है |
(ड़) 'मौत की खोज में' से कवि का तातपर्य है की कुछ लोग चंद पैसो की खातिर लोगों की जान ले लेते है और उग्रवादी या आतंकवाद बनकर मानवता विहीन राह पर चल पड़ते है |
Short Apathit Gadyansh Class 12 with questions and answers
देखकर बाधा विविध, बहु विध्न घबराते नहीं |
रह भरोसे भाग के दुःख भोग पछताते नहीं ||
काम कितना हे कठिन हो किन्तु उकताते नहीं |
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं ||
हो गए एक आन में उनके बुरे दिन भी भले |
सब जगह सब काल में वे हे मिले फुले फैले ||
व्योम का छूते हुए दुर्गास पहाड़ो के शिखर |
वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर ||
गर्जते जलराशि की उठती हुई ऊँची लहर ||
आग की भयदायिनी फैली दिशाओ में लबर ||
ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं |
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कही ||
चिलचिलाती धुप को जो चांदनी देवे बना |
काम पड़ने पर करे जो शेर का भी सामना ||
जो की हँस-हँस के चबा लेते है लोहे का चना |
'है कठिन कुछ भी नहीं' जिनके है जी में ठान ||
कोस कितने ही चले पर वे कभी थकते नहीं |
कौन सी है गाँठ जिसको खोल वे सकते नहीं ||
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) विध्न बाधाओं से कौन नहीं घबराते है? उनकी विशेषताएं बताइये|
(ख) 'चबा लेते है लोहे का चना' से क्या आशय है?
(ग) चिलचिलाती धुप को चांदनी बनाने से क्या सन्देश व्यक्त हुआ है?
(घ) 'जिनके है जी में ठना' से कवि का क्या आशय है?
(ड़) इस काव्यांश का क्या आशय है?
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) जो कर्मनिष्ठा रखते है और कर्मवीर होते है, वे विध्न बाधाओं से नहीं घबराते है | वे भाग्यवादी न होकर कठिन परिश्रम, धीर-वीर, दृढ़-निश्चयी और आन-बान निभाने वाले है| वे कठिन से कठिन काम को भी आसान बना देते है तथा सदा निर्भय बने रहते है |
(ख) अत्यधिक कठिन एवं असाध्य काम को करना - इस आशय के लिए लोहे के चने चबाना मुहावरा प्रसिद्ध है | यहाँ भी इसका यही आशय है | कर्मवीर निर्भय होकर सफलता से सारे कामो को साध लेते है, उनके लिए कोई काम असाध्य नहीं है |
(ग) विपरीत या कठिन परस्थितियो को अनुकूल बनाकर चलने से कर्मवीर का जीवन सफल रहता है | इससे यह सन्देश व्यक्त हुआ है कि हमे कठिन परस्थितियों को अनुकूल बनाने का प्रयास करना चाहिए तथा सदा दृढ़ निश्चयी बनकर उद्यम करना चाहिए |
(घ) 'जिनके है जी में ठान' से कवि का आशय है कि कर्म में विश्वास रखने वाले वीर पुरुष जो कुछ अपने मन में प्रण कर लेते है वे उसे पूरा करके ही रहते है|
(ड़) इस काव्यांश में कवि ने कर्म में विश्वास रखने वाले धीर, वीर, गंभीर और आन- बान पर मर मिटने वाले महापुरुषो का उल्लेख किया है जो कभी विपरीत या कठिन प्रस्तितियो से घबरा कर अपने कर्म-पथ से वापस नहीं लौटते चाहे मार्ग में कितनी ही कठिनाई क्यों न आये उन्हें वे बिना हारे-थके आसानी से पार कर लेते है|
Case based factual Passage for Class 12
उठे राष्ट्र तेरे कंधो पर,
बढे प्रगति के प्रांगण में,
पृथ्वी को रख दिया उठाकर
तूने नभ के आँगन में |
तेरे प्राणो के ज्वरो पर,
लहराते है देश सभी,
चाहे जिसे इधर कर दे तू
चाहे जिसे उधर क्षण में |
विजय वैजयंती फहराती जो,
जग के कोने - कोने में,
उनमे तेरा नाम लिखा है
जीने में बलि होने में |
घहरे राण घनघोर बढ़ी
सेनाए तेरा बल पाकर,
स्वर्ण - मुकुट आ गए चरण तल
तेरे शस्त्र संजोने में |
तेरे बाहुदंड में वह बल,
जो केहरि- कटि तोड़ सके,
तेरे दृढ़ कंधो में वह बल
जो गिरी से ले होड़ सके |
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) 'उठे राष्ट्र तेरे कंधो पर'- इसमें 'तेरे' किसके लिए कहा गया है?
(ख) प्रस्तुत काव्यांश का मूल भाव क्या है? लिखिए
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में कविको तरुणोसे क्या क्या अपेक्षाएं है?
(घ) 'केहरि-कटि' से कवि क्या आशय है?
(ड़) ' विजय वैजयंती फहरी' से कवि का क्या तापर्य है?
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) प्रस्तुत काव्यांश में 'तेरे' शब्द देश के नवयुवको अर्थात देश के तरुणो के लिए कहा गया है; क्योकि देश कि बागडोरअब बूढ़े कि अपेक्षा जवानो के हाथो में होनी चाहिए| देश का उद्धार और चौमुखी प्रगति वे ही कर सकते है |
(ख) प्रस्तुत काव्यांश के मूल भाव यह है कि संसार में जितने भी सामाजिक परिवर्तन एवं लोक कल्याण के कार्य हुए है, वे नौजवानो कि आदम्य शक्ति एवं साहस से ही हुए है | यदि वे कर्तव्य बोध और आत्मविश्वास से मंडित हो जावे, तो वे अपनी क्षमता का सही उपयोग क्र सकते है तथा विश्व में समरसता एवं मानवता कि स्थापना क्र सकते है |
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में कवि का तरुणो से ये अपेक्षाएं है-
(1) वे देश कि प्रगति और रक्षा का बाहर अपने कंधो पर ले |
(2) वे देश में सकारात्मक क्रांति और बदलाव लाये |
(3) वे मुश्किलों का मुकाबला करे और बाधाओं से जरा भी नहीं घबराये |
(4) वे कमजोर लोगों एवं पद- दलितोंकि रक्षा करे |
(5) वे अपनी शक्ति का पूरा उपयोग करे|
(घ) 'केहरि - कटि' शब्द वस्तुत: उपमान है| शेर की कमर लचीली और मजबूत मानी जाती है | शेर अपने शरीर की इस विशेषता से वन्य जीवों का आसानी से शिकार कर लेता है तथा अतीव वेग से दौड़ सकता है | कवि का यहां यही आशय है |
(ड़) 'विजय वैजयंती फहरी' से कवि का तातपर्य यह है कि देश के नौजवान जिधर अपनी नजरे दौडा देते है अर्थात जिधर अपना पराक्रम दिखते है उधर ही अपनी विजय पताका फहरा देते है |
Apathit Gadyansh for Class 12 with answers
अब न गहरी नींद में तुम सो सकोगे,
गीत गाकर मैं जगाने आ रहा हूँ |
अतल अस्ताचल तुम्हे जाने न दूंगा,
अरुण उदयकाल सजाने आ रहा हूँ ||
कल्पना में आज तक उड़ाते रहे तुम,
साधना से मुड़कर सिहरते रहे तुम |
अब तुम्हे आकाश में उड़ने न दूंगा,
आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ ||
सुख नहीं यह, नींद में सपने संजोना,
दुःख नहीं यह शीश पर गुरु भर ढोना ||
शूल तुम जिसको समझते थे अभी तक,
फूल मैं उसको बनाने आ रहा हूँ ||
फूल को जो फूल समझे, भूल है यह,
शूल को जो शूल समझे, भूल है यह |
भूल में अनुकूल या प्रतिकूल के कण,
धूलि भूलो की हटाने आ रहा हूँ ||
देखकर मंझधार में घबड़ा न जाना,
हाथ ले पतवार को घबड़ा न जाना |
मैं किनारे पर तुम्हे थकने न दूंगा,
पार मैं तुमको लगाने आ रहा हूँ ||
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) प्रस्तुत काव्यांश में क्या सन्देश व्यक्त हुआ है?
(ख) 'शूल को जो शूल समझे, भूल है यह'- कवी न ऐसा क्यों कहा है?
(ग) 'अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूँ '- इसका क्या आशय है?
(घ) 'गीत गाकर मैं जगाने आ रहा हूँ' में कवी किसे जगाने की बात कह रहा है और क्यों? समझाइये |
(ड़) 'अब तुम्हे आकाश में उड़ने न दूंगा' से कवी का क्या आशय है?
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि न देश के नवयुवको को सन्देश दिया है कि वे कोरी कल्पनाओं को छोड़कर यथार्थ को समझने का प्रयास करें | जीवन में आलस्य, निराशा, अधीरता और संकीर्णता को त्यागकर उन्नति के मार्ग पर अग्रसर बने और दासता अस्वीकार कर वंदनीय बनने का प्यास करें, तभी देश का कल्याण और उनका जीवन सफल हो सकेगा |
(ख) 'शूल' का अर्थ है दुःख और बाधा| दुःख से मत घबराओ तथा घबराकर पीछे भी मत हटो | उससे सबक लो, उसका मुकाबला करो और ऐसा काम करो कि हमारे तथा दुसरो के दुःख वेदना से मुक्त रहे | अतएव शूल से मत घबराओ, अपितु उससे प्रेरणा प्राप्त करो|
(ग) रात्रि के बढ़ प्रभातकाल होता है, अस्ताचल के बाद उदयाचल पर आभा फैलती है| इसी प्रकार जीवन में निराशा के बाद आशा का संचार करो, आलस्य के स्थान पर सक्रियता अपनाओ| तभी जीवन मार्ग प्रशस्त हो सकेगा|
(घ) इसमें कवि नवयुवको को जगाने कि बात ख रहा है; क्योकि आज का नवयुवक आलस्य, अधीरता और संकीर्णता को अपना सुख मानकर कल्पनाओं में जी रहा है|
(ड़) कवि उन नवयुवको को सचेत करते है जो कल्पनाओं के संसार में जी रहे है, उन्हें कोरी कल्पनाओं को छोड़कर यथार्थ जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए|
Apathit Gadyansh for Class 12
अपठित गद्यांश
विज्ञान के द्वारा मनुष्य ने जिन चमत्कारों को प्राप्त किया है, उनमें दूरदर्शन का स्थान अत्यन्त महान और उच्च है। दूरदर्शन का आविष्कार 19वीं शताब्दी के आस पास ही समझना चाहिए। टेलीविजन दूरदर्शन का अंग्रेजी नाम है। टेलीविजन का अविष्कार महान वैज्ञानिक वेयर्ड ने किया है। टेलीविजन को सर्वप्रथम लंदन में सन् 1925 में देखा गया। लंदन के बाद इसका प्रचार प्रसार इतना बढ़ता गया है कि आज यह विश्व के प्रत्येक भाग में बहुत लोकप्रिय हो गया है। भारत में टेलीविजन का आरंभ 15 सितम्बर सन् 1959 को हुआ। तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने आकाशवाणी के टेलीविजन विभाग का उदघाटन किया था।
टेलीविजन या दूरदर्शन का शाब्दिक अर्थ है- दूर की वस्तुओं या पदार्थों का ज्यों का ज्यों आँखों द्वारा दर्शन करना। टेलीविजन का प्रवेश आज घर घर हो रहा है। इसकी लोकप्रियता के कई कारणों में से एक कारण यह है कि एक रेडियो कैबिनेट के आकार प्रकार से तनिक बड़ा होता है। इसके सभी सेट रेडियो के सेट से मिलते जुलते हैं। इसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह या स्थान पर ले जाया जा सकता है। इसे देखने के लिए हमें न किसी प्रकार के चश्मे या मनोभाव या अध्ययन आदि की आश्वयकताएँ पड़ती हैं। इसके लिए किसी विशेष वर्ग के दर्शक या श्रोता के चयन करने की आश्वयकता नहीं पड़ती है, अर्थात् इसे देखने वाले सभी वर्ग या श्रेणी के लोग हो सकते हैं।
टेलीविजन हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को बड़ी ही गंभीरतापूर्वक प्रभावित करता है। यह हमारे जीवन के काम आने वाली हर वस्तु या पदार्थ की न केवल जानकारी देता है अपितु उनके कार्य-व्यापार, नीति ढंग और उपाय को भी क्रमश बड़ी ही आसानीपूर्वक हमें दिखाता है। इस प्रकार से दूरदर्शन हमें एक से एक बढ़कर जीवन की समस्याओं और घटनाओं को बड़ी ही सरलता के साथ आवश्यक रूप में प्रस्तुत करता है। जीवन से सम्बन्धित ये घटनाएँ-व्यापार कार्य आदि सभी कुछ न केवल हमारे आस पास पड़ोस के ही होते हैं, अपितु दूर दराज के देशों और भागों से भी जुड़े होते हैं। ये किसी न किसी प्रकार से हमारे लिए जीवनोपयोगी ही सिद्ध होते हैं। इस दृष्टिकोण से हम यह कह सकते हैं कि दूरदर्शन हमारे लिए ज्ञान वर्द्धन का बहुत बड़ा साधन है। यह ज्ञान की सामान्य रूपरेखा से लेकर गंभीर और विशिष्ट रूपरेखा की बड़ी ही सुगमतापूर्वक प्रस्तुत करता है। इस अर्थ से दूरदर्शन हमारे घर के चूल्हा-चाकी से लेकर अंतरिक्ष के कठिन ज्ञान की पूरी पूरी जानकारी देता रहता है।
दूरदर्शन द्वारा हमें जो ज्ञान विज्ञान प्राप्त होते हैं। उनमें कृषि के ज्ञान विज्ञान का कम स्थान नहीं है। आधुनिक कृषि यंत्रों से होने वाली कृषि से सम्बन्धित जानकारी का लाभ शहरी कृषक से बढ़कर ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले कृषक अधिक उठाते हैं। इसी तरह से कृषि क्षेत्र में होने वाले नवीन आविष्कारों, उपयोगिताओं, विभिन्न प्रकार के बीज, पशु पक्षी, पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ आदि का पूरा विवरण हमें दूरदर्शन से ही प्राप्त होता है।
दूरदर्शन के द्वारा पर्वों, त्योहार, मौसमों, खेल, तमाशे, नाच, गाने-बजाने, कला, संगीत, पर्यटन, व्यापार, साहित्य, धर्म, दर्शन, राजनीति आदि लोक परलोक के ज्ञान विज्ञान के रहस्य एक एक करके खुल जाते हैं। दूरदर्शन इन सभी प्रकार के तथ्यों का ज्ञान हमें प्रदान करते हुए इनकी कठिनाइयों को हमें एक एक करके बतलाता है और इसका समाधान भी करता है।
दूरदर्शन से सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि इसके द्वारा हमारा पूर्ण रूप से मनोरंजन हो जाता है। प्रतिदिन किसी न किसी प्रकार के विषय आयोजित और प्रायोजित कार्यक्रमों के द्वारा हम अपना मनोरंजन करके विशेष उत्साह और प्ररेणा प्राप्त करते हैं। दूरदर्शन पर दिखाई जाने वाली फिल्मों से हमारा मनोरंजन तो होता ही है, इसके साथ ही साथ विविध प्रकार के दिखाए जाने वाले धारावाहिकों से भी हमारा कम मनोरंजन नहीं होता है। इसी तरह से बाल-बच्चों, वृद्धों, युवकों सहित विशेष प्रकार के शिक्षित और अशिक्षित वर्गों के लिए दिखाए जाने वाले दूरदर्शन के कार्यक्रमों से हम अपना मनोरंजन बार बार करते हैं। इससे ज्ञान प्रकाश की किरणें भी फूटती हैं।
जितनी दूरदर्शन में अच्छाई है, वहाँ उतनी उसमें बुराई भी कही जा सकती है। हम भले ही इसे सुविधा सम्पन्न होने के कारण भूल जाएँ, लेकिन दूरदर्शन के लाभों के साथ साथ इससे होने वाली कुछ ऐसी हानियाँ हैं, जिन्हें हम अनदेखी नहीं कर सकते हैं। दूरदर्शन के बार बार देखने से हमारी आँखों की रोशनी मंद होती है। इसके मनोहर और आकर्षक कार्यक्रम को छोड़कर हम अपने और इससे कहीं अधिक आवश्यक कार्यों को भूल जाते हैं। दूरदर्शन से प्रसारित कार्यक्रम कुछ तो इतने अश्लील होते हैं कि इनसे न केवल हमारे युवा पीढ़ी का मन बिगड़ता है, अपितु हमारे अबोध और नाबालिग बच्चे भी इसके दुष्प्रभाव से नहीं बच पाते हैं। दूरदर्शन के खराब होने से इसकी मरम्मत कराने में काफी खर्च भी पड़ जाते हैं। इस प्रकार दूरदर्शन से बहुत हानियाँ और बुराइयाँ हैं, फिर भी इससे लाभ अधिक हैं। यही कारण है कि यह अधिक लोकप्रिय हो रहा है।
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए|
(ख) दूरदर्शन तथा टेलीविज़न का अर्थ बताइये?
(ग) दूरदर्शन एक वरदान के रूप में किस प्रकार है?
(घ) दूरदर्शन की कुछ हानियाँ भी है, लिखिए?
(ड़) दूरदर्शन का अविष्कार कब और किस ने किया?
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) इस गद्यांश का उचित शीर्षक 'दूरदर्शन एक वरदान' है|
(ख) टेलीविजन या दूरदर्शन का शाब्दिक अर्थ है- दूर की वस्तुओं या पदार्थों का ज्यों का ज्यों आँखों द्वारा दर्शन करना। टेलीविजन का प्रवेश आज घर घर हो रहा है। इसकी लोकप्रियता के कई कारणों में से एक कारण यह है कि एक रेडियो कैबिनेट के आकार प्रकार से तनिक बड़ा होता है। इसके सभी सेट रेडियो के सेट से मिलते जुलते हैं। इसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह या स्थान पर ले जाया जा सकता है। इसे देखने के लिए हमें न किसी प्रकार के चश्मे या मनोभाव या अध्ययन आदि की आश्वयकताएँ पड़ती हैं।
(ग) दूरदर्शन हमारे जीवन में काम आने वाली हर वस्तु या पदार्थ की न केवल जानकारी देता है अपितु उनके कार्य-व्यापार, नीति ढंग और उपाय को भी क्रमश बड़ी ही आसानीपूर्वक हमें दिखाता है। दूरदर्शन के द्वारा हमे ज्ञान विज्ञान की बहुत सी जानकारी प्राप्त होती है| दूरदर्शन के द्वारा हम विभिन्न पर्वो, खेल -तमाशो की जानकारी प्राप्त कर सकते है| दूरदर्शन से सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि इसके द्वारा हमारा पूर्ण रूप से मनोरंजन हो जाता है।
(घ) दूरदर्शन के बार बार देखने से हमारी आँखों की रोशनी मंद होती है। इसके मनोहर और आकर्षक कार्यक्रम को छोड़कर हम अपने और इससे कहीं अधिक आवश्यक कार्यों को भूल जाते हैं। दूरदर्शन से प्रसारित कार्यक्रम कुछ तो इतने अश्लील होते हैं कि इनसे न केवल हमारे युवा पीढ़ी का मन बिगड़ता है, अपितु हमारे अबोध और नाबालिग बच्चे भी इसके दुष्प्रभाव से नहीं बच पाते हैं।
(ड़) दूरदर्शन का अविष्कार 19वीं शताब्दी में हुआ| टेलीविजन का अविष्कार महान वैज्ञानिक वेयर्ड ने किया है। टेलीविजन को सर्वप्रथम लंदन में सन् 1925 में देखा गया।
Discursive Passage Hindi for Class 12
अपठित गद्यांश
युवा उस पीढ़ी को संदर्भित करता है जिन्होंने अभी तक वयस्कता में प्रवेश नहीं किया है लेकिन वे अपनी बचपन की उम्र को पूरी कर चुके हैं। आधुनिक युवक या आज के युवा पिछली पीढ़ियों के व्यक्तियों से काफी अलग हैं। युवाओं की विचारधाराओं और संस्कृति में एक बड़ा बदलाव हुआ है। इसका समाज पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का प्रभाव पड़ा है।
मानसिकता और संस्कृति में परिवर्तन के लिए एक कारण पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव है और दूसरा तकनीक के क्षेत्र में बढ़ती उन्नति है।
पहले ज़माने के लोग एक-दूसरे की जगह पर जाते थे और साथ में अच्छा वक्त बिताते थे। जब भी कोई ज़रूरत होती थी तो पड़ोसी भी एक-दूसरे की मदद के लिए इक्कठा होते थे। हालांकि आज के युवाओं को यह भी पता नहीं है कि बगल के घर में कौन रहता है। इसका मतलब यह नहीं है कि वे लोगों से मिलना जुलना पसंद नहीं करते हैं। वे सिर्फ उन्हीं लोगों के साथ मिलते-जुलते हैं जिनसे वे सहज महसूस करते हैं और ज़रूरी नहीं कि वे केवल किसी के रिश्तेदार या पड़ोसी ही हो। तो मूल रूप से युवाओं ने आज समाज के निर्धारित मानदंडों पर संदेह जताना शुरू कर दिया है।
आधुनिक युवक अपने बुजुर्गों द्वारा निर्धारित नियमों के अनुरूप नहीं चलते हैं। वे अपने माता-पिता और अभिभावकों का साथ तो चाहते हैं लेकिन हर कदम पर उनका मार्गदर्शन नहीं चाहते। आज की युवा पीढ़ी नई चीजें सीखना चाहती है और दुनिया में खुद को तलाश करना चाहती है। आज के युवा काफी बेसब्र और उतावले भी हैं। ये लोग तुरन्त सब कुछ करना चाहते हैं और अगर चीजें उनके हिसाब से नहीं चलती हैं तो वे जल्द नाराज हो जाते हैं।
हालांकि आधुनिक युवाओं के बारे में सब कुछ नकारात्मक नहीं है। मनुष्य का मन भी समय के साथ विकसित हुआ है और युवा पीढ़ी काफी प्रतिभाशाली है। आज के युवक उत्सुक और प्रेरित हैं। आज के युवाओं का समूह काफ़ी होशियार है और अपने लक्ष्य को हासिल करना अच्छी तरह से जानता है। वे परंपराओं और अंधविश्वासों से खुद को बांधे नहीं रखते हैं। कोई भी बाधा उन्हें उन चीज़ों को प्राप्त करने से नहीं रोक सकती जो वे चाहते हैं।
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उन्नति के साथ-साथ विभिन्न गैजेट्स के आगमन से जीवन शैली और जीवन के प्रति समग्र रवैया बदल गया है और आबादी का वह हिस्सा जो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है वह युवा है।
इन दिनों युवा अपने मोबाइल फोन और सोशल मीडिया में इतने तल्लीन रहते हैं कि वे यह भूल गए हैं कि इसके बाहर भी एक जीवन है। आज के युवा स्वयं के बारे में बहुत चिंतित होते हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से वह सब कुछ दिखाना और बताना चाहते हैं जो उनके पास है। हर क्षण का आनंद लेने की बजाए वह यह दिखाना चाहते हैं कि उनका जीवन कैसा रहा है। ऐसा लगता है कि कोई भी वास्तव में खुश नहीं है लेकिन हर कोई दूसरे को यह बताना चाहता है कि उसका जीवन बेहद दूसरों की तुलना में अच्छा और मज़ेदार है।
मोबाइल फोन और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के अलावा जो आधुनिक युवाओं के जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव डाल रहे हैं वह है अन्य गैजेट्स और अन्य तकनीकी रूप से उन्नत उपकरण जिन्होंने लोगों की जीवन शैली में बहुत बड़ा बदलाव लाया है। आज के युवा सुबह पार्क में घूमने की बजाए जिम में कसरत करना पसंद करते हैं। इसी प्रकार जहाँ पहले ज़माने के लोग अपने स्कूल और कार्यस्थल तक पहुंचने के लिए मीलों की दूरी चलकर पूरी करते थे वही आज का युवा कार का उपयोग करना पसंद करता है भले ही उसे छोटी सी दूरी का रास्ता पूरा करना हो। सीढ़ियों के बजाए लिफ्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है, गैस स्टोव की बजाए माइक्रोवेव और एयर फ्रायर्स में खाना पकाया जा रहा है और पार्कों की जगह मॉल पसंद किये जा रहे हैं। सारी बातों का निचोड़ निकाले तो तकनीक युवाओं को प्रकृति से दूर ले जा रही है।
पश्चिमी चकाचौंध से अंधे हो चुके भारत के युवाओं को यह एहसास नहीं है कि हमारी भारतीय संस्कृति हमेशा से बहुत अच्छी थी। हालांकि अंधविश्वासों से अपने आप को बाँधना अच्छा नहीं है लेकिन हमें हमारी संस्कृति से अच्छे संस्कार लेने चाहिए। इसी तरह किसी के जीवन में विकास के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए। हमें प्रौद्योगिकी का गुलाम नहीं बनना चाहिए।
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए?
(ख) युवाओ की मानसिकता और संस्कृति में परिवर्तन के कारण बताइये?
(ग) आधुनिक युवा की सोच सकारत्मक किस प्रकार है?
(घ) प्रौद्योगिकी की उन्नति से युवाओ में क्या नकारत्मकता आई है? लिखिए|
(ड़) पश्चिमी चकाचौंध से अंधे हो चुके भारत के युवाओं को किस बात का एहसास होना चाहिए?
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक 'आज का युवा’ है|
(ख) युवाओ की मानसिकता और संस्कृति में परिवर्तन का कारण पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव है और दूसरा तकनीक के क्षेत्र में बढ़ती उन्नति है। पहले ज़माने में लोग एक दूसरे से मिलते थे और एकदूसरे के काम में हाथ बाटते, बाते करके अपनी समस्याओ को खत्म करते थे परन्तु आज का युवा अपने काम से काम रखने वाला हो चूका है आधुनिक युवक अपने बुजुर्गों द्वारा निर्धारित नियमों के अनुरूप नहीं चलते हैं। वे अपने माता-पिता और अभिभावकों का साथ तो चाहते हैं लेकिन हर कदम पर उनका मार्गदर्शन नहीं चाहते। आज की युवा पीढ़ी नई चीजें सीखना चाहती है और दुनिया में खुद को तलाश करना चाहती है। आज के युवा काफी बेसब्र और उतावले भी हैं।
(ग) मनुष्य का मन भी समय के साथ विकसित हुआ है और युवा पीढ़ी काफी प्रतिभाशाली है। आज के युवक उत्सुक और प्रेरित हैं। आज के युवाओं का समूह काफ़ी होशियार है और अपने लक्ष्य को हासिल करना अच्छी तरह से जानता है। वे परंपराओं और अंधविश्वासों से खुद को बांधे नहीं रखते हैं। कोई भी बाधा उन्हें उन चीज़ों को प्राप्त करने से नहीं रोक सकती जो वे चाहते हैं।
(घ) युवा अपने मोबाइल फोन और सोशल मीडिया में इतने तल्लीन रहते हैं कि वे यह भूल गए हैं कि इसके बाहर भी एक जीवन है। आज के युवा स्वयं के बारे में बहुत चिंतित होते हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से वह सब कुछ दिखाना और बताना चाहते हैं जो उनके पास है। हर क्षण का आनंद लेने की बजाए वह यह दिखाना चाहते हैं कि उनका जीवन कैसा रहा है। ऐसा लगता है कि कोई भी वास्तव में खुश नहीं है लेकिन हर कोई दूसरे को यह बताना चाहता है कि उसका जीवन बेहद दूसरों की तुलना में अच्छा और मज़ेदार है।
(ड़) पश्चिमी चकाचौंध से अंधे हो चुके भारत के युवाओं को यह एहसास नहीं है कि हमारी भारतीय संस्कृति हमेशा से बहुत अच्छी थी। हालांकि अंधविश्वासों से अपने आप को बाँधना अच्छा नहीं है लेकिन हमें हमारी संस्कृति से अच्छे संस्कार लेने चाहिए। इसी तरह किसी के जीवन में विकास के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए। हमें प्रौद्योगिकी का गुलाम नहीं बनना चाहिए।
Apathit Gadyansh for Class 12 with answers
अपठित गद्यांश
सोशल मीडिया के बारे में इन दिनों बहुत बाते हो रही है। सोशल मीडिया अच्छा है या बुरा इस तथ्य के बारे में भी बहुत बहस चल रही है। हमारे लिए कई विचार उपलब्ध हैं और यह हमारे ऊपर है कि हम इसे सही तरीके से पढ़े, समझे और निष्कर्ष तक पहुंचे।
सोशल मीडिया प्लेटफार्म अपने उपयोगकर्ताओं तथा लाखों अन्य लोगों को जानकारी साझा करने में मदद करता है। सोशल मीडिया के महत्व को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि यह आज हमारे जीवन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
1.ब्रांड बनाना: गुणवत्ता सामग्री, उत्पाद और सेवाएं आज ऑनलाइन आसानी से पहुंचने में सक्षम हैं। आप अपने उत्पाद को ऑनलाइन बाजार में बेच सकते हैं और एक ब्रांड बना सकते हैं।
2.ग्राहक के लिए सहायक: खरीद और उत्पाद या सेवा से पहले ग्राहक समीक्षा और प्रतिक्रिया पढ़ सकते हैं और स्मार्ट विकल्प बना सकते हैं।
3.सोशल मीडिया एक महान शिक्षा उपकरण है।
4.सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से आप अपने इच्छित दर्शकों से जुड़ सकते हैं।
5.गुणवत्ता की जानकारी तक पहुंचने का यह एक शानदार तरीका है।
6.सोशल मीडिया आपको केवल एक क्लिक में समाचार और सभी घटनाएं प्राप्त करने में मदद करता है।
7.सोशल मीडिया आपको मित्रों, रिश्तेदारों से जुड़ने में तथा नए दोस्त बनाने में भी मदद करता है।
सोशल मीडिया वास्तव में कई फायदे पहुंचाता है, हम सोशल मीडिया का उपयोग समाज के विकास के लिए भी कर सकते है। हमने पिछले कुछ वर्षों में सूचना और सामग्री का विस्फोट देखा है और हम सोशल मीडिया के ताकत से इंकार नहीं कर सकते है। समाज में महत्वपूर्ण कारणों तथा जागरूकता पैदा करने के लिए सोशल मीडिया का व्यापक रूप से उपयोग किया जा सकता है। सोशल मीडिया एनजीओ और अन्य सामाजिक कल्याण समितियों द्वारा चलाए जा रहे कई महान कार्यों में भी मदद कर सकता है। सोशल मीडिया जागरूकता फैलाने और अपराध से लड़ने में अन्य एजेंसियों तथा सरकार की मदद कर सकता है। कई व्यवसायों में सोशल मीडिया का उपयोग प्रचार और बिक्री के लिए एक मजबूत उपकरण के रुप में किया जा सकता है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से कई समुदाय बनाये जाते है जो हमारे समाज के विकास के लिए आवश्यक होते हैं।
सोशल मीडिया को आजकल हमारे जीवन में होने वाले सबसे हानिकारक प्रभावो में से एक माना जाने लगा है, और इसका गलत उपयोग करने से बुरा परिणाम सामने आ सकता है। सोशल मीडिया के कई नुकसान और भी हैं जैसे:
1.साइबर बुलिंग: कई बच्चे साइबर बुलिंग के शिकार बने हैं जिसके कारण उन्हें काफी नुकसान हुआ है।
2.हैकिंग: व्यक्तिगत डेटा का नुकसान जो सुरक्षा समस्याओं का कारण बन सकता है तथा आइडेंटिटी और बैंक विवरण चोरी जैसे अपराध, जो किसी भी व्यक्ति को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
3.बुरी आदते: सोशल मीडिया का लंबे समय तक उपयोग, युवाओं में इसके लत का कारण बन सकता है। बुरी आदतो के कारण महत्वपूर्ण चीजों जैसे अध्ययन आदि में ध्यान खोना हो सकता है। लोग इससे प्रभावित हो जाते हैं तथा समाज से अलग हो जाते हैं और अपने निजी जीवन को नुकसान पहुंचाते हैं।
4.घोटाले: कई शिकारी, कमजोर उपयोगकर्ताओं की तलाश में रहते हैं ताकि वे घोटाले कर और उनसे लाभ कमा सके।
5.रिश्ते में धोखाधड़ी: हनीट्रैप्स और अश्लील एमएमएस सबसे ज्यादा ऑनलाइन धोखाधड़ी का कारण हैं। लोगो को इस तरह के झूठे प्रेम-प्रंसगो में फंसाकर धोखा दिया जाता है।
6.स्वास्थ्य समस्याएं: सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकता है। अक्सर लोग इसके अत्यधिक उपयोग के बाद आलसी, वसा, आंखों में जलन और खुजली, दृष्टि के नुकसान और तनाव आदि का अनुभव करते हैं।
7.सामाजिक और पारिवारिक जीवन का नुकसान: सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग के कारण लोग परिवार तथा समाज से दुर, फोन जैसे उपकरणों में व्यस्थ हो जाते है।
दुनिया भर में लाखों लोग है जो कि सोशल मीडिया का उपयोग प्रतिदिन करते हैं। इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलूओं का एक मिश्रित उल्लेख दिया गया है। इसमें बहुत सारी ऐसी चीजे है जो हमे सहायता प्रदान करने में महत्वपुर्ण है, तो कुछ ऐसी चीजे भी है जो हमें नुकसान पहुंचा सकती है।
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए?
(ख) सोशल मीडिया हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका किस प्रकार निभा रहा है?
(ग) सोशल मीडिया से होने वाले नुकसान क्या क्या है?
(घ) सोशल मीडिया स्वस्थ के लिए किस प्रकार हानिकारक है?
(ड) ‘प्रतिदिन’ का समास विग्रह कीजिये तथा भेद की परिभाषा भी बताइये|
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक 'सोशल मीडिया का महत्व’ है|
(ख) किसी भी ब्रांड को प्रचलित बनाना गुणवत्ता सामग्री, उत्पाद और सेवाएं आज ऑनलाइन आसानी से पहुंचने में सक्षम हैं। आप अपने उत्पाद को ऑनलाइन बाजार में बेच सकते हैं और एक ब्रांड बना सकते हैं। ग्राहक के लिए सहायक: खरीद और उत्पाद या सेवा से पहले ग्राहक समीक्षा और प्रतिक्रिया पढ़ सकते हैं और स्मार्ट विकल्प बना सकते हैं। सोशल मीडिया एक महान शिक्षा उपकरण है। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से आप अपने इच्छित दर्शकों से जुड़ सकते हैं। गुणवत्ता की जानकारी तक पहुंचने का यह एक शानदार तरीका है।
(ग) सोशल मीडिया से होने वाले नुकसान इस प्रकार है:-
1.साइबर बुलिंग: कई बच्चे साइबर बुलिंग के शिकार बने हैं जिसके कारण उन्हें काफी नुकसान हुआ है।
2.हैकिंग: व्यक्तिगत डेटा का नुकसान जो सुरक्षा समस्याओं का कारण बन सकता है तथा आइडेंटिटी और बैंक विवरण चोरी जैसे अपराध, जो किसी भी व्यक्ति को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
3.बुरी आदते: सोशल मीडिया का लंबे समय तक उपयोग, युवाओं में इसके लत का कारण बन सकता है। बुरी आदतो के कारण महत्वपूर्ण चीजों जैसे अध्ययन आदि में ध्यान खोना हो सकता है। लोग इससे प्रभावित हो जाते हैं तथा समाज से अलग हो जाते हैं और अपने निजी जीवन को नुकसान पहुंचाते हैं।
4.घोटाले: कई शिकारी, कमजोर उपयोगकर्ताओं की तलाश में रहते हैं ताकि वे घोटाले कर और उनसे लाभ कमा सके।
5.रिश्ते में धोखाधड़ी: हनीट्रैप्स और अश्लील एमएमएस सबसे ज्यादा ऑनलाइन धोखाधड़ी का कारण हैं। लोगो को इस तरह के झूठे प्रेम-प्रंसगो में फंसाकर धोखा दिया जाता है।
(घ) सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकता है। अक्सर लोग इसके अत्यधिक उपयोग के बाद आलसी, वसा, आंखों में जलन और खुजली, दृष्टि के नुकसान और तनाव आदि का अनुभव करते हैं।
(ड) ‘प्रतिदिन’ - दिन - दिन, भेद- अव्ययीभाव समास
अव्ययीभाव समास - जब समास में सम्मिलित पूर्वपद अव्यय हो तथा उसके योग से पूर्ण समस्तपद अव्यय बन जाए तो अव्ययीभाव समास होता है |
Apathit Gadyansh for Class 12 with questions and answers pdf
अपठित गद्यांश
महिलायें समाज के विकास एवं तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उनके बिना विकसित तथा समृद्ध समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ब्रिघम यंग के द्वारा एक प्रसिद्ध कहावत है की ‘अगर आप एक आदमी को शिक्षित कर रहे है तो आप सिर्फ एक आदमी को शिक्षित कर रहे है पर अगर आप एक महिला को शिक्षित कर रहे है तो आप आने वाली पूरी पीढ़ी को शिक्षित कर रहे है’। समाज के विकास के लिए यह बेहद जरुरी है की लड़कियों को शिक्षा में किसी तरह की कमी न आने दे क्योंकि उन्हें ही आने वाले समय में लड़कों के साथ समाज को एक नई दिशा देनी है। ब्रिघम यंग की बात को अगर सच माना जाए तो उस हिसाब से अगर कोई आदमी शिक्षित होगा तो वह सिर्फ अपना विकास कर पायेगा पर वहीं अगर कोई महिला सही शिक्षा हासिल करती है तो वह अपने साथ साथ पूरे समाज को बदलने की ताकत रखती है।
महिलाओं के बिना मनुष्य जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसे पागलपन ही कहा जाएगा की उनकी प्रतिभा को सिर्फ इसी तर्क पर नज़रअंदाज कर दिया जाए कि वे मर्द से कम ताकतवर तथा कम गुणवान है। भारत की लगभग आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व महिलाएं करती है। अगर उनकी क्षमता पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसका साफ़ साफ़ मतलब है देश की आधी जनसँख्या अशिक्षित रह जाएगी और अगर महिलाएं ही पढ़ी लिखी नहीं होगी तो वह देश कभी प्रगति नहीं कर पाएगा। हमें यह बात समझनी होगी की अगर एक महिला अनपढ़ होते हुए भी घर इतना अच्छा संभाल लेती है तो पढ़ी लिखी महिला समाज और देश को कितनी अच्छी तरह से संभाल लेगी।
महिलाएं परिवार बनाती है, परिवार घर बनाता है, घर समाज बनाता है और समाज ही देश बनाता है। इसका सीधा सीधा अर्थ यही है की महिला का योगदान हर जगह है। महिला की क्षमता को नज़रअंदाज करके समाज की कल्पना करना व्यर्थ है। शिक्षा और महिला ससक्तिकरण के बिना परिवार, समाज और देश का विकास नहीं हो सकता। महिला यह जानती है की उसे कब और किस तरह से मुसीबतों से निपटना है। जरुरत है तो बस उसके सपनों को आजादी देने की।
पहले महिलाओं की दशा दासियों से भी बदतर थी। अगर कोई महिला लड़की को जन्म देती तो उसे या तो मार दिया जाता था या उसे घर के सदस्यों द्वारा पीटा जाता था। लड़की को जन्म देना पाप माना जाता था। उनसे सिर्फ यही अपेक्षा की जाती थी कि वे लड़के को ही जन्म दे। पर बदलते वक़्त के साथ हालात बदलते गए। अब लोग पहले से ज्यादा जागरूक है और महिलाओं कि मदद करने के लिए आगे आने लगे है। अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए?
(ख) महिलाये समाज के विकास एवं तरक्की में किस प्रकार महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है?
(ग) महिलाओं के बिना मनुष्य जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। तर्क स्पस्ट करो?
(घ) प्राचीन काल में महिलाओ की दशा किस प्रकार की थी बताइये?
(ड) ‘प्रतिनिधित्व’ शब्द में प्रत्यये तथा उपसर्ग बताइये
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक ‘देश में महिलाओ का महत्व’ है|
(ख) महिलायें समाज के विकास एवं तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उनके बिना विकसित तथा समृद्ध समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ब्रिघम यंग के द्वारा एक प्रसिद्ध कहावत है की ‘अगर आप एक आदमी को शिक्षित कर रहे है तो आप सिर्फ एक आदमी को शिक्षित कर रहे है पर अगर आप एक महिला को शिक्षित कर रहे है तो आप आने वाली पूरी पीढ़ी को शिक्षित कर रहे है’। समाज के विकास के लिए यह बेहद जरुरी है की लड़कियों को शिक्षा में किसी तरह की कमी न आने दे क्योंकि उन्हें ही आने वाले समय में लड़कों के साथ समाज को एक नई दिशा देनी है।
(ग) ‘महिलाओं के बिना मनुष्य जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती’ भारत की लगभग आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व महिलाएं करती है। अगर उनकी क्षमता पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसका साफ़ साफ़ मतलब है देश की आधी जनसँख्या अशिक्षित रह जाएगी और अगर महिलाएं ही पढ़ी लिखी नहीं होगी तो वह देश कभी प्रगति नहीं कर पाएगा। हमें यह बात समझनी होगी की अगर एक महिला अनपढ़ होते हुए भी घर इतना अच्छा संभाल लेती है तो पढ़ी लिखी महिला समाज और देश को कितनी अच्छी तरह से संभाल लेगी।
(घ) पहले महिलाओं की दशा दासियों से भी बदतर थी। अगर कोई महिला लड़की को जन्म देती तो उसे या तो मार दिया जाता था या उसे घर के सदस्यों द्वारा पीटा जाता था। लड़की को जन्म देना पाप माना जाता था। उनसे सिर्फ यही अपेक्षा की जाती थी कि वे लड़के को ही जन्म दे। पर बदलते वक़्त के साथ हालात बदलते गए।
(ड) प्रति- उपसर्ग, निधि- मूलशब्द, त्व- प्रत्यये|
Apathit Gadyansh for Class 12
अपठित गद्यांश
आतंकवाद एक अत्यंत भयावह समस्या है जिसमें पूरा विश्व ही जूझ रहा है। आतंकवाद केवल विकासशील या निर्धन राष्ट्रों की समस्या हो, ऐसी बात नहीं। विश्व का सबसे शक्तिशाली और समृद्ध राष्ट्र अमेरिका भी इससे बच नहीं पाया है। कुछ वर्षों पहले जिस प्रकार उस पर आतंकवादी हमला हुआ, उससे उसकी जड़े हिल गई।
‘आतंक’ कर अर्थ है – भय अथवा दहशत। अमानवीय तथा भय उत्पन्न करने वाली ऐसी गतिविधि जिसका उद्देश्य निजी स्वार्थ पूर्ति या अपना दबदबा बनाए रखने के उद्देश्य से या बदला लेने की भावना से किया गया काम हो – आतंकवाद कही जाती है। इस प्रकार आतंकवाद मूल में कुत्सित स्वार्थ वृति, घ्रणा, द्वेष, कटुता और शत्रुता की भावना विरोध की भावना होती है। अपना राजनितिक दबदबा बनाए रखना, अपने धर्म को अन्य धर्मों से श्रेष्ठ सिद्ध करने की भावना तथा कट्टर धर्माधता भी आतंकवाद को बढ़ावा देता है। आज विश्व में जिस प्रकार का आतंकवाद फल-फूल रहा है, उसके पीछे सांप्रदायिक धर्माधता एवं कट्टरता एक प्रमुख कारण है। आज विश्व में कुछ इस प्रकार के संगठन विद्द्यमान हैं जिनका उद्देश्य ही आतंकवाद को फैलाना है। वे इस आतंकवाद के सहारे ही अपना वर्चस्व सिद्ध करना चाहते हैं। इस प्रकार के संगठन युवाओं को दिशा भ्रमित करके, उन्हें धर्म, राजनीति या सांप्रदायिकता के नाम पर गुमराह करके उनके हृदय में क्रूरता, कट्टरता तथा घृणा का ज़हर घोलकर बेगुनाओं का खून भने के लिए प्रेरित बहाने में सफल हो जाते हैं। ‘फ़िदाइन’ हमले इस बात का प्रमाण हैं कि ये दिशा भ्रमित युवक अपनी जान पर खेलकर भी खून की होली खेलने में नहीं झिझकते और मासूमों का खून बहाकर भी इनका कलेजा नहीं पसीज़ता। इनका हृदय पाषाण जैसा कठोर हो जाता है, इनकी मानवीय चेतना लुप्त हो जाती है और वे किसी भी प्रकार का घिनोना कृत्या करना स्वयं को धन्य समझते हैं।
औसमां बिन लादेन जैसे आतंकवादी आज पूरे विश्व के लिए आतंक का चेहरा बने हुए है। अमेरिका को भी उसे पकड़ने में दस सालों से ज्यादा लगे। आज भी उसका आतंकी नेटवर्क पूरे विश्व में फैला हुआ है। अमेरिका के दो टावरों को ध्वस्त करने की योजना भी उसी ने बनाई थी।
भारत भी आतंकवाद से जूझता आ रहा है। पहले पंजाब में आतंकवाद पनपा। जब वहां समाप्त हुआ तो आज देश के अनेक महानगरों में फैला गया है। मुंबई बमकांड, असम के उल्फा उग्रवादी संगठन, बोडो संगठन, नागालैंड, मिजोरम,सिक्किम आदि राज्यों में नक्सली संगठन भारत की एकता, अखंडता के लिए खतरनाक गतिविधियाँ होती रहती हैं। अनेक सैनिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। जब आतंकवादिओं ने भारतीय संसद पर ही हमला कर दिया, तो भला और कौन सा स्थान सुरक्षित होगा।
आतंकवाद के कारण ही कश्मीर के लाखों पंडित अपना घर-बार तथा व्यापर छोड़ने को विवश हुए तथा आज विस्थापितों का जीवन जीने को मजबूर हैं। जम्मू कश्मीर के आतंकवादी संगठनों को अनेक ऐसे देशों से सहायता एवं प्रशिक्षण मिलता है जो नहीं चाहते कि भारत उन्नति करे तथा एक शक्ति के रूप में उभरे। इस अमानुषिक कार्य में पडोसी देशों का भी सहयोग है, अमेरिका जानते हुए भी उन्हें सेन्य सहायता दे रहा है जिससे उसके हौंसले और बुलंद हो गये हैं। वह आतंकवाद
को बढ़ावा देने की लिए धार्मिक भावनाओं का सहारा लेते है। जम्मू में रघुनाथ मंदिर और गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकवादी हमले इसका प्रमाण हैं।
आतंकवाद के कारण मानवता का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। आतंकवाद को मिटने के लिए दृढ़ संकल्प तथा कठोर कार्यवाही आवश्यक है। यदि भारत को अपनी छाती से आतंकवाद को मिटाना है तो उसे विश्व जनमत की अवहेलना करके भी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को समूल नष्ट करना होगा तथा आतंकवाद को जड़ से उखाड़ना फेंकने के लिए जिस प्रकार की कार्यवाही की आवशयकता हो उसके लिए कृतसंकल्प होना पड़ेगा। इस समस्या का समाधान शांति से संभव नहीं है क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए?
(ख) आतंकवाद क्या है बताइये?
(ग) हमारे देश में आतंकवाद किस प्रकार बढ़ता जा है?
(घ) प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर आतंकवाद को रोकने के उपाय बताइये?
(ड़) प्रशिक्षण तथा विरोध में शब्द में मूलशब्द और उपसर्ग बहाइये?
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक ‘आतंवाद’ है|
(ख) ‘आतंक’ कर अर्थ है – भय अथवा दहशत। अमानवीय तथा भय उत्पन्न करने वाली ऐसी गतिविधि जिसका उद्देश्य निजी स्वार्थ पूर्ति या अपना दबदबा बनाए रखने के उद्देश्य से या बदला लेने की भावना से किया जाता है – आतंकवाद कही जाती है।
(ग) आतंकवाद मूल में कुत्सित स्वार्थ वृति, घ्रणा, द्वेष, कटुता और शत्रुता की भावना, विरोध की भावना होती है। अपना राजनितिक दबदबा बनाए रखना, अपने धर्म को अन्य धर्मों से श्रेष्ठ सिद्ध करने की भावना तथा कट्टर धर्माधता भी आतंकवाद को बढ़ावा देता है। आज विश्व में जिस प्रकार का आतंकवाद फल-फूल रहा है, उसके पीछे सांप्रदायिक धर्माधता एवं कट्टरता एक प्रमुख कारण है। आज विश्व में कुछ इस प्रकार के संगठन विद्द्यमान हैं जिनका उद्देश्य ही आतंकवाद को फैलाना है। वे इस आतंकवाद के सहारे ही अपना वर्चस्व सिद्ध करना चाहते हैं। इस प्रकार के संगठन युवाओं को दिशा भ्रमित करके, उन्हें धर्म, राजनीति या सांप्रदायिकता के नाम पर गुमराह करके उनके हृदय में क्रूरता, कट्टरता तथा घृणा का ज़हर घोलकर बेगुनाओं का खून भने के लिए प्रेरित बहाने में सफल हो जाते हैं।
(घ) आतंकवाद को मिटने के लिए दृढ़ संकल्प तथा कठोर कार्यवाही आवश्यक है। यदि भारत को अपनी छाती से आतंकवाद को मिटाना है तो उसे विश्व जनमत की अवहेलना करके भी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को समूल नष्ट करना होगा तथा आतंकवाद को जड़ से उखाड़ना फेंकने के लिए जिस प्रकार की कार्यवाही की आवशयकता हो उसके लिए कृतसंकल्प होना पड़ेगा। इस समस्या का समाधान शांति से संभव नहीं है क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
(ड़) प्रशिक्षण- प्र उपसर्ग तथा शिक्षण मूलशब्द तथा विरोध- वि उपसर्ग तथा क्रोध मूलशब्द|
Apathit Gadyansh for Class 12 pdf with answers
अपठित गद्यांश
माध्यम का अर्थ होता है वह साधन या ढंग, जिसको अपनाकर कोई व्यक्ति या हम कुछ ग्रहण करते हैं। शिक्षा के माध्यम पर विचार करने से पहले उसका उद्देश्य जान लेना आवश्यक है। मनुष्य की सोई और गुप्त शक्तियों को जगाना, उन्हें सही दिशा में प्रयुक्त कर सकने की क्षमता प्रदान करना ही शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य और महत्व हुआ करता है। अपने इस महत्वपूर्ण उद्देय की पूर्ति किसी देश की कोई शिक्षा-पद्धति तभी सफलतापूर्वक कर सकती है, जब वह उस माध्यम या भाषा में दी जाए जिसे शिक्षार्थी भली प्रकार से समझ-बूझ सकता है-जो उसे अपरिचित और कठिन न लगे और जो उसकी अपनी परिस्थितियों के सर्वथ अनूकूल हो। स्वतंत्र भारत में शिक्षार्थी का यह दुर्भाज्य ही कहा जाएगा कि एक तो यहां शिक्षा-पद्धति वही पुरानी, पराधीन मानसिकता की परिचायक, गुलाम मनोवृति वाले मुंशी और क्लर्क पैदा करने वाली चालू हैं, दूसरी तरफ उसे प्रदान करने का तभी तक सर्वसुलभ माध्यम भी नहीं अपनाया जा सका। परिणामस्वरूप हमारी समूची शिक्षा-पद्धति और उसका ढांचा एक खिलवाड़ बनकर रह गया है। इस खिलवाड़ को मिटाने के लिए यह आवश्यक है कि समूची शिक्षा-पद्धति को बदलकर उसे प्रदान करने का कोई एक सार्वदेशिक माध्यम भी निश्चित-निर्धारित किया जाए। ऐसा करके ही शिक्षा, शिक्षार्थी और राष्ट्र का भला संभव हो सकता है।
इस देश में शिक्षा का माध्यम क्या होना चाहिए, इस प्रश्न पर सामान्य और उच्च स्तरों पर कई बार विचार हो चुका है, पर संकल्प शक्ति के अभाव में आज तक हमारी शिक्षाशास्त्री, नेता और सरकार किसी अंतिम निर्णय तक नहीं पहुंच सके। भिन्न प्रकार के विचार अवश्य सामने आए हैं। एक मुख्य विचार यह आया कि आरंभ से अंत तक शिक्षा का माध्यम तथाकथित अंतर्राष्ट्रीय भाष अंग्रेजी ही रहना चाहिए। पर इस विचार को एक तो मानसिक गुलामी का परिचायक कहा जा सकता है, दूसरे इस देश की आम जनता के लिए ऐसा हो पाना संभव और व्यावहारिक भी नहीं है। सामान्य एंव स्वतंत्र राष्ट्र के गौरव की दृष्टि से भी यह उचित नहीं। दूसरा विचार यह है कि अन्य सभी स्वतंत्र राष्ट्रों के समान क्यों न हम भी अपनी संविधान-स्वीकृत राष्ट्रभाषा को ही शिक्षा का माध्यम बनांए। लेकिन इस विचार के रास्ते में निहित स्वार्थों वाले राजनीतिज्ञ उत्तर-दक्षिण का प्रश्न उठा, हिंदी में तकनीकी और ज्ञान-विज्ञान के विषयों से संबंधित पुस्तकों के अभाव की बातें कहकर रोड़े अटकाए हुए हैं। इसे हमारी शिक्षा-पद्धति और उससे जुड़े अधिकांश शिक्षार्थियों का दुर्भाज्य ही कहा जाएगा। अन्य कुछ नहीं।
उपर्युक्त मतों के अतिरिक्त एक मत यह भी सामने आया है कि प्रारंभिक शिक्षा तो प्रदेश विशेष की प्रमुख मातृभाषा में ही हो। उसके बाद पांचवीं-छठी कक्षा से राष्ट्रभाषा और अंग्रेजी का अध्ययन-अध्यापन भी आरंभ कर दिया जाए। यह क्रम उच्चतर माध्यमिक शिक्षा तक चलता रहे। उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए राष्ट्रभाषा या कोई भी एक भाषा माध्यम के रूप में स्वीकार कर उसी में शिक्षा दी जाए। प्रश्न यह उठता है कि वह भाषा कौन सी हो? निश्चय ही वह विदेशी भाषा अंग्रेजी नहीं, बल्कि राष्ट्रभाषा हिंदी ही हो सकती है।
इस प्रकार यह विचार भी सामने आ चुका है कि देश को भाषा के आधार पर कुछ विशेष संभागों में बांटकर एक विशिष्ट और प्रचलित संभागीय भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जाए। पर इस प्रकार करने से व्यावहारिक स्तर की कई कठिनाइयां हैं। सबसे बड़ी बाधा तो यह है कि तब विशेष प्रतिभाओं का उपयोग सार्वदेशिक स्तर पर न होकर मात्र संभागीय स्तर तक ही सीमित होकर रह जाएगा। दूसरी कठिनाई किसी एक संभागीय भाषा विशेष के चुनाव की भी है। सभी अपनी-अपनी भाषा पर बल देंगे। तब एक संभाग भी भाषाई झगड़ों का अखाड़ा बनकर रह जाएगा। अत: यह विचार भी व्यावहारिक नहीं कहा जा सकता। ऐसा करके भाषा के आधार पर प्रांतों का और विभाजन कतई संगत नहीं हो सकता।
हमारे विचार में शिक्षा की माध्यम-भाषा का जनतंत्री प्रक्रिया से ही निर्णय संभव हो सकता है। जनतंत्र में बहुमत का निर्णय माना जाता है। अत: देखा यह जाना चाहिए कि संविधान-स्वीकृत पंद्रह-सोलह भाषाओं में से सर्वाधिम क्षेत्र किसी भाषा का है, कौन-सी ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक पढ़ा-लिखा, उसके बाद बोला और अंत में काम चलाने के लिए समझा जाता है। जनतंत्र की इस बहुमत वाली प्रणाली को अपनाकर शिक्षा की माध्यम-भाषा का निर्णय सरलता से किया जा सकता है। इसके लिए क्षेत्रीय भाषाओं तथा अन्य स्वार्थों के त्याग की बहुत आवश्यकता है और आवश्यकता है राष्ट्रीय एकत्व की उदात्त भावना की। इसके अभाव में निर्णय कतई संभव नहीं हो सकता। यदि अब भी हम शिक्षा के सारे देश के लिए एक माध्यम स्वीकार कर उसकी व्यवस्था में नहीं जुट जाते, तो चालू पद्धति और समूची शिक्षा अंत में अपनी वर्तमान औपचारिक स्थिति से भी हाथ धो बैठेगी। अत: प्राथमिकता के आधार पर अब इस बात का निर्णय हो ही जाना चाहिए कि शिक्षा का सर्वाधिक उचित माध्यम क्या हो सकता है। स्वंय शिक्षा और उसके साथ भारतीय समाज एंव राष्ट्र का वास्तविक भला तभी संभव हो सकेगा। अन्य कोई उपाय नहीं। इस ज्वलंत समस्या से आंखे चुराए रहने के कारण देश का बहुत अहित हो चुका है और निरंतर हो रहा है। परंतु अब अधिक नहीं होना चाहिए।
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए?
(ख) किसी देश में शिक्षा का माध्यम क्या होना चाहिए?
(ग) देश को बाँट कर किस प्रकार शिक्षा का माध्यम बनाया जा सकता है?
(घ) शिक्षा का सर्वाधिक उचित माध्यम क्या है बताइये?
(ड़) ‘राष्ट्रभाषा’ का समास विग्रह कीजिये तथा भेद की परिभाषा भी बताइये|
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक ‘शिक्षा का महत्व’ है|
(ख) एक मुख्य विचार यह आया कि आरंभ से अंत तक शिक्षा का माध्यम तथाकथित अंतर्राष्ट्रीय भाष अंग्रेजी ही रहना चाहिए। पर इस विचार को एक तो मानसिक गुलामी का परिचायक कहा जा सकता है, दूसरे इस देश की आम जनता के लिए ऐसा हो पाना संभव और व्यावहारिक भी नहीं है।
दूसरा विचार यह है कि अन्य सभी स्वतंत्र राष्ट्रों के समान क्यों न हम भी अपनी संविधान-स्वीकृत राष्ट्रभाषा को ही शिक्षा का माध्यम बनांए। लेकिन इस विचार के रास्ते में निहित स्वार्थों वाले राजनीतिज्ञ उत्तर-दक्षिण का प्रश्न उठा, हिंदी में तकनीकी और ज्ञान-विज्ञान के विषयों से संबंधित पुस्तकों के अभाव की बातें कहकर रोड़े अटकाए हुए हैं। इसे हमारी शिक्षा-पद्धति और उससे जुड़े अधिकांश शिक्षार्थियों का दुर्भाज्य ही कहा जाएगा।
(ग) देश को भाषा के आधार पर कुछ विशेष संभागों में बांटकर एक विशिष्ट और प्रचलित संभागीय भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जाए। पर इस प्रकार करने से व्यावहारिक स्तर की कई कठिनाइयां हैं। सबसे बड़ी बाधा तो यह है कि तब विशेष प्रतिभाओं का उपयोग सार्वदेशिक स्तर पर न होकर मात्र संभागीय स्तर तक ही सीमित होकर रह जाएगा।
(घ) यदि अब भी हम शिक्षा के सारे देश के लिए एक माध्यम स्वीकार कर उसकी व्यवस्था में नहीं जुट जाते, तो चालू पद्धति और समूची शिक्षा अंत में अपनी वर्तमान औपचारिक स्थिति से भी हाथ धो बैठेगी। अत: प्राथमिकता के आधार पर अब इस बात का निर्णय हो ही जाना चाहिए कि शिक्षा का सर्वाधिक उचित माध्यम क्या हो सकता है। स्वंय शिक्षा और उसके साथ भारतीय समाज एंव राष्ट्र का वास्तविक भला तभी संभव हो सकेगा। अन्य कोई उपाय नहीं। इस ज्वलंत समस्या से आंखे चुराए रहने के कारण देश का बहुत अहित हो चुका है और निरंतर हो रहा है। परंतु अब अधिक नहीं होना चाहिए।
(ड़) राष्ट्रभाषा - राष्ट्र की भाषा - तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास - जिस समास में अंतिम पद प्रधान रहता है, अर्थात प्रथम पद गौण होता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं । इस में दोनों पदों के बीच कारक की विभक्ति लुप्त रहती है ।
Comprehension Passages Hindi for Class 12
अपठित गद्यांश
आधुनिक युग को यदि भ्रष्टाचार का युग कहा जाए, तो अत्युक्ति न होगी। आज भ्रष्टाचार जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में फैल चूका है। इसकी जड़े इतनी गहरी छा चुकी हैं कि समाज का कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं रह पाया है। भ्रष्टाचार ने समाज से नैतिक मूल्यों को ध्वस्त कर दिया है स्वार्थ इर्ष्या, द्वेष तथा लोभ जैसे दुर्गुणों को बढ़ावा दिया है।
‘भ्रष्टाचार’ शब्द दो शब्दों के मेल से बना है –‘भ्रष्ट + आचार’ अर्थात ऐसा व्यवहार जो भ्रष्ट हो, जो समाज के लिए हानिप्रद हो। भ्रष्टाचार के मूल में मानव की स्वार्थ तथा लोभ वृति है। आज प्रत्येक व्यक्ति अधिकाधिक न कमाकर सभी प्रकार के भोतिक सुखों का आनंद भावना चाहता है। धन की लालसा से भ्रष्ट आचरण करने पर मजबूर कर देती है तथा वह उचितानुचित को समझते हुए भी अनुचित की और प्रवृत हो जाता है। मन की अनेक लालसाएँ उसके विवेक को कुंठित कर देती हैं।
मानव का मन अत्यंत चंचल होता है जब वह उसे लोभ और लालच की जंजीरों में जकड़ लेता है तो मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है तथा उसे प्रत्येक बुरा कार्य भी अच्छा लगने लगता है। वह सामाजिक नियमों के तोड़कर, कानून का उल्लंघन करके केवल अपने स्वार्थ के लिए अनैतिक कर्मों की और प्रवृत्त हो जाता है। मानव-निर्माता नीतियों नियमों का उल्लंघन करना ही भ्रष्टाचार है।
मनुष्य और पशु में आहार, निद्रा, भय, मैथुन ये चार बातें सामान रूप से विद्द्यामन हैं। मनुष्य पशु से अगर किसी बात से श्रेष्ठ है तो वह उसका विवेक। विवेक शून्य मनुष्य और पशु में कोई अंतर नहीं रह जाता। आज प्रत्येक मानुष ‘स्व’ की परिधि में जी रहा है उसे ‘पर’ की कोई चिंता नहीं जहाँ भी जिसका दांव लगता है, हाथ मार लेता है।
भ्रष्टाचार के मूल में शासन तंत्र बहुत हद तक उत्तरदायी है। ऊपर से निचे तक जब सभी भ्रष्टाचारी हों, तो भला कोई ईमानदार कैसे हो सकता है। जिसका दायित्व भ्रष्टाचार के विरुद्ध शिकायत सुनना है या जिनकी नियुक्ति उन्मूलन के लिए की गई है, अगर वही भ्रष्टाचारी बन जाएँ, तो फिर भ्रष्टाचार कैसे मिट पायेगा।
आज भ्रष्टाचार की जड़े इतनी गहरी हैं कि कोई भी अपराधी रिश्वत देकर छूट जाता तथा निर्दोष को सजा भी हो सकती है। लोगों में न तो कानून का भय है और न ही सामाजिक दायित्व की भावना। भ्रष्टाचार की प्रवाह ऊपर से निचे की और बहता है। जब देश के बड़े – बड़े नेता ही धोटालों में लिप्त हों, तो नीचे क्या होगा। आश्चर्य की बात तो यह है कि आज तक किसी भ्रष्ट नेता या मंत्री को सजा नहीं मिली। विश्व के दुसरे देशों में ऐसी स्थिति नहीं है। वहाँ के लोग भ्रष्टाचारी नेता को सहन नहीं कर पाते। अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन को एक घोटाले के कारण ही हार का सामना करना पड़ा था। भारत की इस स्थिति को देखकर हमें एक शायर का शेर याद आता है।
जिस देश में हर क्षेत्र में भ्रष्टाचारी विद्दमान हों, उसका क्या अंजाम होगा, सोच पाना भी कठिन है। व्यापारी लोग मिलावटी सामान बेचते हैं, सिंथेटिक दूध बाजार में बेचा जा रहा है, नकली दवाओं की भरमार है, फलों और सब्जियों को भी रासायनिक पदार्थों द्वारा आकर्षित बनाकर बेचा जाता हैं, चाहे इससे लोगों की जान ही क्यों न चली जाए। कर–चोरी आम बात हो गई है, तस्करी का समान खुलेआम बिकता दिखाई देता है। कोई भी अपराध हो जाए, भ्रष्टाचारी रिश्वत देकर छूट जाता है। अनेकों बार तो उच्च अधिकारियों के सरंक्षण में ही भ्रष्टाचार पनपता है। अधिकारियों की जेबें भरने के बाद किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं होती। पिछले दिनों तहलका कांड में कई नेताओं की रिश्वत लेते दिखाया, पर क्या हुआ देश में इतने घोटाले हुए किसी को भी सजा नहीं मिली देश में ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ तथा ‘बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपया’ वाली कहावतें चरितार्थ हो रही हैं।
भ्रष्टाचार को किस प्रकार दूर किया जाए यह गंभीर प्रशन है। इसके लिए स्वच्छ प्रशासन तथा नियमों का कड़ाई से पालन आवयश्क है। यदि पचास – सौ भ्रष्टाचारियों को कड़ी सजा मिल जाए, तो इससे भयभीत होकर अन्य लोग भी भ्रष्ट आचरण करते समय भयभीत रहेंगे। भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए युवा पीढ़ी को आगे आना होगा और एक भ्रष्टाचारमुक्त समाज का निर्माण करने के लिए कृतसंकल्प होना पड़ेगा।
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए?
(ख) भ्रष्टचार का अर्थ बताइये?
(ग) भ्रष्टाचार को किस प्रकार दूर किया जा सकता है?
(घ) एक भ्रष्टाचारी व्यक्ति को सजा दिलाना कठिन क्यों है?
(ड) राष्ट्रपति का समास विग्रह कीजिये तथा भेद की परिभाषा भी बताइये|
उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक ‘भ्रष्टाचार’ है|
(ख) ‘भ्रष्टाचार’ शब्द दो शब्दों के मेल से बना है –‘भ्रष्ट + आचार’ अर्थात ऐसा व्यवहार जो भ्रष्ट हो, जो समाज के लिए हानिप्रद हो।धन की लालसा से भ्रष्ट आचरण करने पर मजबूर कर देती है तथा वह उचितानुचित को समझते हुए भी अनुचित की और प्रवृत हो जाता है। मन की अनेक लालसाएँ उसके विवेक को कुंठित कर देती हैं।
(ग) भ्रष्टाचार दूर किया जाए यह गंभीर प्रशन है। इसके लिए स्वच्छ प्रशासन तथा नियमों का कड़ाई से पालन आवयश्क है। यदि पचास – सौ भ्रष्टाचारियों को कड़ी सजा मिल जाए, तो इससे भयभीत होकर अन्य लोग भी भ्रष्ट आचरण करते समय भयभीत रहेंगे। भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए युवा पीढ़ी को आगे आना होगा और एक भ्रष्टाचारमुक्त समाज का निर्माण करने के लिए कृतसंकल्प होना पड़ेगा।
(घ) आज भ्रष्टाचार की जड़े इतनी गहरी हैं कि कोई भी अपराधी रिश्वत देकर छूट जाता तथा निर्दोष को सजा भी हो सकती है। लोगों में न तो कानून का भय है और न ही सामाजिक दायित्व की भावना। भ्रष्टाचार की प्रवाह ऊपर से निचे की और बहता है। जब देश के बड़े – बड़े नेता ही धोटालों में लिप्त हों, तो नीचे क्या होगा। आश्चर्य की बात तो यह है कि आज तक किसी भ्रष्ट नेता या मंत्री को सजा नहीं मिली। विश्व के दुसरे देशों में ऐसी स्थिति नहीं है। वहाँ के लोग भ्रष्टाचारी नेता को सहन नहीं कर पाते।
(ड) राष्ट्र का पति - तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास - जिस समास में अंतिम पद प्रधान रहता है, अर्थात प्रथम पद गौण होता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं । इस में दोनों पदों के बीच कारक की विभक्ति लुप्त रहती है ।
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